बसंत पंचमी को विद्यालय दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए....?

लगभग 200 साल पूर्व 2 फरवरी 1835 को अंग्रेज शासक मैकॉले ने भारत की शिक्षा पद्धति को जिदपूर्वक बदलते हुए भारतीय (देशी ) विद्यालय - व्यवस्था  के स्थान पर अंग्रेजी व्यवस्था वाले स्कूलों की स्थापना का निर्णय कराया था। लम्बे संघर्ष के बाद देश को अग्रेंजों से तो स्वतंत्रता तो मिल गई, लेकिन अंग्रेजी भाषा की परतंययता दिनों - दिन बढ़ती जा रही है। अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी (पाश्चात्य) संस्कारों की सहज स्वीकार्यता के कारण भारतीय संस्कृति ‘‘अस्तित्व के संकट’’ से जूझ रही है। इस संकट की चर्चा तो सर्वत्र की जाती हैं, चिताएँ भी यदा कदा प्रकट की जाती है लेकिन इसमें बदलाव की सार्थक पहल न होने से सब किंकर्तव्य विमूढ़ है। इस परिस्थति में यह समीचीन है कि परिस्थतियों में बदलाव की एक सार्थक पहल के रूप में ‘‘विद्यालय दिवस’’ मनाने की परिकल्पना की जाए और उसे सहज और स्वैच्छिक रूप से कार्यान्वित करने की प्रक्रिया भी तय की जाए। यह सर्वमान्य तथ्य है कि विद्यालय की समस्त गतिविधियों के मूल (वास्तविक) संचालक उसके शिक्षक ही होते हैं। जैसा चाहते हैं वैसा विद्यालय बन ही जाता है। अन्य सभी लोग और विद्यालय संचालन के सहयोगी कारक बन सकते हैं। 
शिक्षकों की कार्य दिशा, परिस्थति और मनः स्थिति में बदलाव की एक सार्थक पहल वर्ष 2010 में शिक्षक दिवस के अवसर पर शिक्षक संदर्भ समूह के गठन के रूप में हुई थी। शिक्षक संदर्भ समूह का लक्ष्य शिक्षकों को आत्मोन्नित के पथ पर चलने की सद्रप्रेरणा देना है। अपनी दयनीयता से मुक्त होकर शिक्षक स्वयं के विकास की दिशा में निरंतर चलने और बाल - शिक्षण के क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य करते हुए अपने सद्कार्याें के आधार पर समाज में अपनी विशेष पहचान स्थापित कर लेने भी भावना  से जुड़े रहे हैं। ऐसी ही भावना से ओत-प्रोत शिक्षक और शैक्षिक कार्यकर्ता भी स्वैच्छिक ढंग से समूह इसके साथ जुड़े हुए है। शिक्षक संदर्भ समूह शिक्षकों का ऐसा व्यवस्थित, स्वैच्छिक और रचनात्मक मैत्री समूह है जो बगैर किसी लाभ-लोभ या प्रशंसा की मनोभावना के स्वातः सुखाय कार्यरत है। यह सुखद है कि देश के यशस्वी लोक सेवक और प्रसिद्ध गांधीवादी कार्यकता डॉ. एस.एन. सुब्बराव जी और प्रसिद्ध शिक्षाविद् प्रो. रमेश दबे जी  हमारे मुख्य प्रेरक हैं। इनका शुभाशीष सदैव हमें असीम ऊर्जा देता है। 
 विगत वर्ष शिक्षक संदर्भ समूह की ओर से 5 अक्टूबर 2019 को आयोजित विश्व शिक्षक दिवस सर्वाधिक प्रभावी और परिणामदायी आयोजन बन गया, क्योंकि यह आयोजन देश और समाज के सर्वमान्य संत आचार्य विद्यासागर जी के पावन सनिध्य में सिद्धोदय  तीर्थ क्षेत्र नेमावर ( देवास) में उल्लास पूर्वक संपन्न हुआ था। आचार्य श्री का आयोजन में पावन  सान्निध्य और प्रेरक संदेश पाकर शिक्षक धन्यता महसूूस कर रहे हैं। अपने प्रेरणास्पद संबोधन में शिक्षकों से आचार्य श्री ने स्पष्ट कहा था ‘‘ अपनी दिशा बदलो आपकी दशा अपने आप बदल जाएगी। ’’शिक्षकों के लिए यह ऐसा निर्देश है जिसे जो स्वीकार करेगा, उसी को सफलता प्राप्त होगी। आचार्य श्री चाहते हैं कि देश भर में अच्छे विद्यालयों की स्थापना हो। अच्छे विद्यालयों की स्थापना का कार्य अततः शिक्षकों के मानसिक परिवर्तन (विकास) पर निर्भर है। इस मानसिक परिवर्तन को प्रक्रियागत स्वरूप देना वर्तमान की    महती आवश्यकता है। आचार्य विद्यासागर जी के अनुसार ‘‘ ज्ञान को संयत बनाना ही शिक्षा का लक्ष्य है। जिसका मन स्थिर होगा उसका चरित्र भी संयत होगा और जीवन मंे दयनीयता और निराश नहंी आएगी।’’ शिक्षा के द्वारा यह समझ में आना ही  चाहिए कि क्या ग्रहण करने योग्य है और क्यो छोड़ने योग्य है 
 देश में श्रेष्ठ नागरिकों की आवश्यकता का बोध सभी को है। श्रेष्ठ नागरिकों की जरूरत को केवल विद्यालय ही पूरा कर सकते हैं अतः विद्यालयों  का रूपांतरण करने की यह समूची प्रक्रिया अंततः श्रेष्ठ नागरिकों के निर्माण पर केन्द्रित रहेगी। श्रेष्ठ शिक्षक ही श्रेष्ठ नागरिकों का निर्माण करने मंे सक्षम हो सकते हैं। इसलिए इस पहल और प्रक्रिया के सच्चे कार्यकर्ता शिक्षक ही हैं। सही शिक्षक वह है जिसकी हर चर्या  से शिक्षा मिलती है, शिक्षा देना ही जिसका जीवन है। शिक्षक का कार्य केवल पढ़ाना नही, ज्ञान के सृजन में सहयोग करना होता है। अपने विषय में दक्ष, तत्वचिंतक, कार्य को संतुष्टि के साथ करने वाला, पक्षपात रहित,  अल्प आंरभी और अल्प परिग्रही, बच्चों को वास्तव में समझने वाला, वात्सल्य गुण का द्यारक, अपने शिष्यों के प्रति सकारात्मकता रखने वाला धैर्य पूर्वक, सुनने की क्षमता वाला, दर्पण के समान स्वयं और विद्यार्थी के प्रति निष्पक्ष, भाव वाला, दोषमार्जक, गंभीर, स्वस्थ, प्रतिफल की इच्छा से रहित , सदैव विद्यार्थी  की उन्नति की भावना वाला , निः स्वार्थ और अध्ययनशील शिक्षक ही सफल शिक्षण कर सकते है। ऐसे शिक्षक ही अच्छे विद्यालयों की परिकल्पना को साकार कर सकते हैं।  
 देश के विद्यालयों के वास्तविक रूपांतरण की यह अभिनव पहल करने की दृष्टि से ही यह प्रस्तावित किया गया है कि माँ  सरस्वती के जन्म दिवस (बसंत पंचमी) को ही ‘विद्यालय दिवस’ का स्वरूप दिया जाए। वर्तमान परिदृश्य में देश और दुनिया में ंिशक्षक दिवस और विद्यार्थी दिवस तो मनाए जाते है लेकिन विद्यालय दिवस कहीं नहंी मनाया जा रहा हैं। बसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती का पूजन तो किया ही जाता है यह भारतीय संस्कृति में विद्यारम्भ दिवस भी है। बसंत पंचमी सरस्वती का प्रकटोत्सव दिवस है। सरस्वती परमचेतना हैं जो हमारी बुद्धि,प्रज्ञा और मनोवृत्तियों की संरक्षिका है। ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती के जन्मदिवस को विद्यालय दिवस का रूप  देना अंततः भारतीय संस्कृति को प्रोत्साहित करना है। बसंत पंचमी महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ जी का जन्म दिवस है जिनके मन में  सदैव निर्धनों के प्रति अपार प्रेम और गहन पीड़ा बोध  रहा। अपने पैसों और वस्त्रों को खुले मन से निर्धनों को बांट देने के कारण ही वे महाप्राण कहलाए। इस प्रकार बंसत पंचमी को विद्यालय दिवस का रूप  देना एक अत्यंक सार्थक पहल हो सकती है। 
 एक स्वैच्छिक पहल के रूप में शिक्षक संदर्भ समूह की ओर से इस वर्ष ‘‘शिक्षा का गणतंत्र‘‘ कार्यक्रम 26 जनवरी से 30 जनवरी तक एक स्वैच्छिक शैक्षिक अभियान के रूप में शुरू किया गया  है जिसके तहत विविध क्रियाकलाप प्रस्तावित किए गए हैं। 30 जनवरी को बंसत पंचमी के दिन विद्यालय दिवस के रूप में मनाने का आव्हान किया गया है जिसके तहत् शिक्षकों  से अपेक्षा की गई है कि सभी शिक्षक अपने अपने विद्यालयों के बच्चों के प्रति सहज, सरल, और सरस बनें, और बच्चों के लिए अपने विद्यालय को सर्वश्रेष्ठ बनाएंँ। यदि शिक्षक अपने अच्छे कार्यो के आधार पर समाज का भरोसा जीतकर समुचित सहयोग प्राप्त करते हुए सरकार का विश्वास अर्जित करें पाएँ तो संभव है कि शिक्षक भारतीय संस्कृति के प्रणेता बन सकते हैं। (जो आज के समय की सर्वाधिक आवश्यकता भी  है। )
 ( लेखक शिक्षक संदर्भ समूह के समन्वयक हैं। )