मेरा जन्म 2 जुलाई 1963 को झाबुआ जिले के रंभापुर ग्राम में हुआ। मेरी प्रारंभिक शिक्षा ग्राम स्तर पर ही संपन्न हुई। उसके बाद मैंने हायर सकेण्ड्री की पढ़ाई तारा हायर सेकेण्डरी स्कूल मेघनगर से तथा स्नातक व स्नातकोत्तर झाबुआ से और बी.एड. रीजनल काॅलेज भोपाल से किया। शिक्षा पूर्ण होने के बाद दिसंबर 1994 में जिले में सहायक शिक्षकों की भर्ती आॅपरेशन ब्लेक बोर्ड योजना के तहत रोजगार कार्यालय के माध्यम से की गयी जिसमें सहायक शिक्षक के पद पर प्रा. वि. रातीमाली पर मेरी पद स्थापना हुई।
इससे पूर्व मैंने 1988 में शहीद चन्द्रशेखर आजाद स्नातकोत्तर महाविद्यालय झाबुआ में अतिथि विद्वान के पद पर वाणिज्य कक्षाओं का अध्यापन किया। मैंने 1994 से 1996 तक शास. प्रा. वि. रातीमाली, 1997 से 2000 तक शा.प्रा.वि. गुजरवाड़ा, में शिक्षण कार्य किया। इसके बाद 2001 से 2004 तक जन शिक्षक के पद पर कार्य किया। 2004 से 2011 तक मा. वि. झाराडाबर में कक्षा शिक्षण करने के बाद पुनः 2011 से 2012 तक बीएसी के पद पर झाबुआ में कार्य किया। इसके बाद 2012 से 2014 तक मा. वि. ढाढनिया में और 2014 से अद्यतन शास.उ.मा.वि. रंभापुर पर कक्षा 11, 12 में वाणिज्य विषय का अध्यापन कार्य कर रहा हूँ।
शासकीय सेवा में कटु अनुभवों से सीखकर व उन्हें भूलकर मैंने आगे बढ़ना ही ठान लिया था। बीआर जी, डी. आर.जी के रहते मित्रों सेे जो सीखा था, सांझा किया। उपलब्धि ये रही कि जहाँ भी रहा परिवार की तरह रहा जिससे आज भी छात्र-छात्राएँ व ग्रामीणजन सम्मान पूर्वक मिलते हैं। यह जीवन की सबसे बड़ी कमाई है। शिक्षक का पद स्वेच्छा से चुना था इसलिए हर जगह कोशिश की कि पदीय दायित्वों का निर्वहन ईमानदारी पूर्वक हो। कभी भी शैक्षणिक योग्यता/पदानुरूप कार्य करने में बाधा नहीं हुई। जितना भी बना श्रेष्ठ देने का प्रयास किया। बस एक ही मूल मंत्र-सबका साथ-सबका विकास।
मेरे नवाचार व उपलब्धियाँ:-
- 11 व 12 की कक्षा बड़ी होने से पाठ्यक्रम को पूर्ण कराने के साथ छात्र जीवन व भविष्य मैं कैसे उपयोगी हो, समझाने का प्रयास।
- हर वर्ष 100 प्रतिशत परिणाम के साथ शासन स्तर से 25000/- की पुरूस्कार राशि हेतु छात्रों का चयन।
- जनशिक्षक के पद पर रहते हुए संकुल स्तरीय तीन दिवसीय बाल मेले का आयोजन। जिसमें संकुल के समस्त छात्र/छात्रा, शिक्षक बंधु/बहनें का ब्लाक तथा जिला स्तर सी बीआरसीसी व डीपीसी के सहयोग व मार्गदर्शन से सफल आयोजन।
- मेले में बच्चों ंकी खेलकूद, भाषण, सांस्कृतिक कार्यक्रम, फेन्सी ड्रेस, निबंध आदि गतिविधि का आयोजन जिसमें पालकगण व ग्रामवासी पंच/सरपंचगण की भागीदारी रही। नित्य सभी को स्वल्पाहार और प्रोत्साहन हेतु पुरस्कारों का वितरण भी किया गया।
- वर्तमान में विद्यालय में शैक्षिक कार्य के साथ वर्ष भर चलने वाले सभी सह शैक्षिक कार्यक्रमों में सहभागिता करना भी रूचिकर है।
- विद्यालय ग्रामीण क्षेत्र में होने के बावजूद उपलब्ध संसाधनों का भरपूर व उचित उपयोग करते हुए विद्यालय परिवार द्वारा संस्था का नाम रोशन करने हेतु हर संभव प्रयास किया जाता है।
''पानी में रहकर मगर से बैर'' के रूप में किसी व्यक्ति विशेष की बात नहीं करते हुए इस पर सिर्फ इतना कहना चाहूँगा कि सभी कर्मचारी हितैषी कार्य समय पर पूर्ण हों। विभाग द्वारा समय-समय पर आयोजित समस्या समाधान शिविर औपचारिक बनकर रह जाते हैं। काश! कुछ व्यवस्थाओं में इच्छा शक्ति के साथ सुधार हो पाता। असफलता या मन की बात सामान्यतः जीवन में जो मिला सन्तुष्टि के साथ ग्रहण किया। शैक्षणिक योग्यता व रूचिअनुसार पद नहीं होना एक टीस रही जिसे कभी भी कर्तव्य में बाधा नहीं बनने दिया। बस जहाँ भी रहे श्रेष्ठ देने का प्रयास जारी रखा। शिक्षा विभाग का एक अदना सा सिपाही होने के बावजूद ईश्वर की असीम कृपा व अपनों की शुभकामनाओं से प्राप्त स्तर तक अच्छे मित्रों के साथ जुड़ना व पहचान।
- कोशिश भी कर, उम्मीद भी रख रास्ता भी चुन,
फिर इसके बाद, थोड़ा मुकद्दर तलाश कर। - अगर बे-वेब चाहते हो, फरिश्तों से रिश्ता कर लो
मैं इंसान हूँ और खताएं होना लाज़मी है।